पिछले साल 16 अक्टूबर 2021 को अमेज़न प्राइम वीडियो (Amazon Prime Video) पर एक बहुत ही शानदार फिल्म रिलीज़ हुई थी, जिसका नाम है “सरदार उधम”| इस फिल्म के निर्देशक हैं शूजित सिरकार और इसमें विकी कौशल मुख्य भूमिका पर है| यह फिल्म एक स्वतंत्रता सेनानी पर आधारित है, जिसका नाम था उधम सिंह| उधम सिंह वो महान स्वतंत्रता सेनानी हैं जिन्होंने अपने भारत देश के लिए बहुत बड़ी क़ुरबानी दिया है और ख़ुशी ख़ुशी फांसी पर चढ़ गए थे|

उधम सिंह वो महान सक्स हैं, जिन्हने 1919 में अंग्रेजों द्वारा अमृतसर के जलियाँवाला बाग में किये बहुत दर्दनीय घटना जलियाँवाला बाग हत्याकांड का बदला Michael O’Dwyer को मार कर लिया था| उन्होंने ये बदला लंदन जा कर 21 साल बाद लिया था| उन्होंने उनके ही देश में रहते हुए Dwyer को मारने का योजना बनाया, और मौका मिलते ही भरे सभा में Michael O’Dwyer को तीन गोली चला कर मार दिए, बिलकुल उसी तरह जिस तरह भरी सभा में घुसकर जलियाँवाला बाग के मासूमों को मारा गया था|

पर कौन है ये उधम सिंह? कहा से आये थे ये? इनका जन्म कहाँ हुआ और इनके माँ बाप कौन थे? आखिर उधम सिंह की असली कहानी क्या है? सब कुछ जानते हैं इस लेख में, इस लेख में हम बताने वाले है उधम की असली कहानी (Udham Singh Real Story) और उनकी जीवनी (biography), पढ़ते रहिये उधम सिंह विकी (wiki)|

उधम सिंह का जीवन परिचय | Udham Singh Biography in Hindi

अब बात करते है उधम सिंह की असली कहानी का, इनका जीवन परिचय हम शुरू से शुरू करते हैं|

उधम सिंह का जन्म 26 दिसंबर 1899 को पंजाब के एक छोटे से गाँव सुनाम में हुआ था| जन्म के बाद इनका नाम शेर सिंह रखा गया था| उनके माताजी का नाम था नारायण कौर और पिताजी का नाम था तेहाल सिंह, उनका एक बड़ा भाई भी था, जिसका नाम था साधु| उधम के पिता एक बहुत ही कम वेतन पाने वाले छोटे से एक मजदुर थे, जो सामान इधर से उधर उठाकर ले जाने का काम करते थे| बाद में उन्होंने रेलवे में वॉच मैन की नौकरी में शामिल हो गए|

उनके माँ बाप का साथ ज्यादा दिनों का नहीं था| उधम की माँ का निधन तभी हो गया, जब उधम 2 या 3 साल के थे और 8 साल के उम्र में उनके पिता का निधन हो गया| बहुत काम उम्र में दोनों भाई अनाथ हो गए थे| उनके माँ बाप के जाने के बाद कुछ दिनों तक उधम के अंकल ने दोनों बच्चो को अपने साथ रखा, बाद में वो दोनों भाइयों को सेंट्रल खालसा अनाथालय में छोड़ के आ गए|

12वीं तक की पढाई उधम ने अनाथालय में रह कर ही पूरा किया| अनाथालय में रहने के बाद दोनों भाइयों का नाम बदल दिया गया, शेर सिंह का नाम हो गया उधम सिंह और उनके भाई साधु का नाम हो गया मुक्ता सिंह| कुछ दिनों बाद सन 1917 में अचानक आई एक अनजान बीमारी के वज़ह से उधम के भाई मुक्ता का भी निधन हो गया| उनके भाई के जाने के बाद उधम पूरी तरह से अकेले हो गए थे, अब इस दुनिया में अनाथालय को छोड़ कर उनका कोई नहीं था|

जलियाँवाला बाग हत्याकांड | Jallianwala Bagh massacre

यह उस समय की बात थी जब अंग्रेज सरकार ने भारत देश में एक नया कानून लगाया था, जिसका नाम था ‘रॉलेट एक्ट’| इस कानून के तहत सरकर किसी को भी कभी भी पकड़ कर जेल में डाल सकती थी, वो भी बिना किसी गिरफ़्तारी वारंट के| इस कानून को हमारे देश के राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने काले कानून की संज्ञा दी थी| इस कानून के तहत ही दो स्वतंत्रता सेनानियों को गिरफ्तार कर लिया गया था, जिनका नाम था सत्यपाल और सैफुद्दीन किचलू|

उनके गिरफ़्तारी के बाद करीब 20,000 लोग 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर के जलियाँवाला बाग में बैसाखी मानने और गिरफ़्तारी का शांतिपूर्ण ढंग से विरोध करने के लिए इकट्ठा हुए थे| उधम सिंह यहाँ अपने अनाथालय के तरफ से आये थे और इनको अपने मित्रों के साथ लोगों को पानी पिलाने का काम दिया गया था|

उस समय ब्रिटिश भारत के पंजाब के गवर्नर थे Michael O’Dwyer| जब Michael O’Dwyer को इस विरोध का पता चला, तो उन्होंने General Dyer को जलियाँवाला बाग में होने वाले विरोध को रोकने के लिए भेजा| General Dyer अपने बड़े सेना और तोपों के साथ जलियाँवाला बाग पहुंचे और उस बाग को चारो तरफ से घेर लिया, आपको बाता दें की उस बाग में बहार निकलने और अंदर जाने के लिए केवल एक ही रास्ता था, जहाँ खुद General Dyer अपने सैनिकों को लेकर खड़ा था|

वहां पहुंचते ही General Dyer ने अपने सैनिकों को गोलियां चलने का आर्डर दे देता है और सैनिक शांति से बैठे 20,000 लोगों पर अंधाधुन गोलियां बरसाना शुरू कर देते हैं, कुछ लोग अपनी जान बचने के लिए वहां के एक कुएं में कूदने लग जाते है, जिसके वजह वह कुआँ भी लाशों से भर गया था| 10-15 मिनट बिना रुके गोलियां चलने के बाद वहां हज़ारो बेगुनाहों की जान चले  जाती है|

इस घटना में मौजूद उधम सिंह की जान किसी तरह से बच जाती है, पर उन्होंने अपने आँखों के सामने

हज़ारो लोगों को मरते देखा था| उधम सिंह की देशभक्ति जग जाती है और वो उसी जगह पर Michael O’Dwyer को जान से मारने का प्रतिज्ञा लेते हैं, जिसने General Dyer को जलियाँवाला बाग में भेजा था|

जलियाँवाला बाग हत्याकांड को ये भारत देश कभी नहीं भूल सकता, आज भी जलियाँवाला बाग के दीवारों में गोलियों की निशान मौजूद है, जो चीख चीख कर अंग्रेज हुकूमत के क्रूरता को दर्शाता है|

ग़दर पार्टी और उधम सिंह | Ghadar Party and Udham Singh

उधम सिंह शुरू से ही भगत सिंह से बहुत ज्यादा प्रेरित थे, और वो भी क्रन्तिकारी आंदोलन का हिस्सा बनाना चाहते थे| वे 1924 में ग़दर पार्टी में शामिल हो गए, और Michael O’Dwyer को मारने वाले प्रतिज्ञा को पूरा करने का तयारी शुरू कर दिए| इस बिच उन्होंने देश विदेश की बहुत सारी यात्राएं की, सन 1927 में जब वो वापिस भारत आये, तब गैरकानूनी हथियार रखने के जुर्म में उन्हें जेल हो गया और उनको 5 वर्ष की सजा सुनाई गई|

1931 में जब वो जेल से रिहा हुए तब उन पर पंजाब पुलिस द्वारा दिनभर नज़र राखी जाती थी| उधम कहाँ जा रहे हैं, क्या कर रहें हैं, किस्से मिल रहे है, आदि सभी कार्यो पर नज़र रखा जाता था| उधम किसी तरह से पंजाब से कश्मीर गए और कश्मीर से जर्मनी के रास्ते 1934 में लंदन चले गए|

उधम सिंह का बदला | Udham Singh’s Revenge

लंदन पहुंच कर वो एक इंजीनियर के काम पर लग गए और वहां एक आम नागरिक की तरह रहने लगे, साथ ही  Michael O’Dwyer को मारने का योजना भी बनाते रहते थे| सरदार उधम सिंह को एक ऐसे मौके की तलाश थी जिसमे हज़ारों के संख्या में लोग इक्कट्ठे हुए हो और वहां Michael O’Dwyer भी शामिल हुआ हो|

और वो दिन आया 13 मार्च 1940 को, जलियाँवाला बाग हत्याकांड के 21 साल के बाद| उस दिन Michael O’Dwyer ईस्ट इंडिया एसोसिएशन और सेंट्रल एशियन सोसाइटी के मीटिंग में शामिल होने वाला था और बोलने वाला था| यह मीटिंग लंदन के कैक्सटन हॉल में रखा गया था, जहाँ हज़ारों के संख्या में लोग उपस्थित थे|

उधम सिंह पुरे योजना के साथ वहां पहुँच गए, उन्होनेँ 6 गोलियों वाली बन्दुक पहले से खरीद रखी थी, जिसे वो एक डायरी में छुपा कर ले गए थे| डायरी के अंदर के पृष्ठों को उन्होंने बन्दुक के आकर का काट रखा था, जिससे वहां पर बन्दुक रखने पर किसी को पता ना चले|

मीटिंग के शुरू होने के बाद मौका देख कर सरदार उधम सिंह ने 6 में से 3 गोलियाँ Michael O’Dwyer के सीने पर चला दी| Michael O’Dwyer की मौके पर ही मौत हो गई, उसके बाद उधम सिंह वहां से भागे नहीं, उन्होंने  खुद को वहीं पर ही आत्मसमर्पित कर दिया|

शहीद उधम सिंह | Martyr Udham Singh

Michael O’Dwyer के कातिल के तौर पर उधम सिंह को आधिकारिक रूप से 01 अप्रैल 1940 को घोषित किया गया, और उनको ब्रिक्सटन के जेल में भेज दिया गया| जेल में रहते हुए अपने अदालती मुकदमा के दौरान उन्होंने 42 दिन का भूख हड़ताल भी किया| आखिर में उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई, और 31 जुलाई 1940 को उनको पेंटनविले जेल में फांसी दे दी गई|

आज भी शहीद सरदार उधम सिंह की अंतिम अवशेष अमृतसर के जलियाँवाला बाग में सहेज के रखा गया है|

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