समलैंगिक्ता और LGBT आज के समय में बहुत आम बात हो गई है क्यूंकि यह एक व्यक्तिगत चयन है, और इसलिए इंसानियत के तौर पर हमें इसका सम्मान करना चाहिए| पहले यह सब चीज़े बाहर देशों में आम बात थी, पर आज के दिनों में समलैंगिक्ता और ट्रांसजेंडर जैसी चीज़े हमारे देश में भी आम हो गया है| हमारे देश में समलैंगिक सम्बन्ध पहले भी था, परन्तु हर कोई इसे खुलकर क़बूल नहीं करता था, इसके पीछे मुख्यतः दो कारण थे|
पहला यह कि हमारे देश में समाज के लोग इन चीज़ो को जल्द कबूलते नहीं हैं, और दूसरा यह की हमारे देश में ऐसा कोई कानून नहीं था, जो समलैंगिक सम्बन्ध का सहयोग करता हो| हमारे देश में इन सम्बन्ध के खिलाफ बहुत ही शख्त कानून था और वह था ‘धारा 377’|
समलैंगिक, गे, लेस्बियन, बिसेक्सुअल, ट्रांसजेंडर, अथवा सभी LGBT समुदाय के लोगों में ख़ुशी की लहर तब दौड़ गई जब 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने सेक्शन 377 को हटा लिया, और कहा की समलैंगिक सम्बन्ध व्यक्तिगत चयन है| सुप्रीम कोर्ट ने देश के लोगों को ऐसे सम्बन्ध बनाने पर अनुमोदन दे दिया|
पर क्या भारत देश में एक ही लिंग के लोगों को आपस में शादी करने का हक़ है? क्या एक ही लिंग वाले लोग खुले रूप से समाज में शादी कर सकते हैं? क्या ये लोग खुले रूप से खुद को आधिकारिक कपल घोषित कर सकते हैं? विस्तार से जानते हैं इस लेख में, पढ़ते रहिये ‘क्या भारत में समलैंगिक विवाह वैध है? (Is gay marriage legal in India?)|
पर उससे पहले जानते हैं कि क्या था धारा 377, और इसके नियम क्या थे?
क्या है धारा 377? | What is Section 377?
भारत देश में सेक्शन 377 की शुरुआत आज़ादी के बहुत पहले से हो गया है| 1861 में जब भारत में अंग्रेज़ शाशन हुआ करता था, तब उनकी सरकार ने धारा 377 पुरे देश में लागु किया था| इस धारा 377 को अगर बहुत सरल भाषा में समझें तो इस धारा के अनुसार कोई भी एक लिंग के व्यक्ति आपस में सम्बन्ध नहीं बना सकते, इसमें यह भी कहा गया था कि ओरल और ana* *क्स आपराधिक कृत्य के अंदर आता है| अतः चाहे वो एक लिंग के हो या फिर अलग अलग लिंग के हों, सभी के लिए ओरल और ana* *क्स आपराधिक कृत्य है, क्यूंकि इन सभी कृत्यों को अप्राकृतिक कहा गया है|
इसके बाद से ही समलेंगिकता गैरकानूनी हो गया था, और ऐसा करने वालों पर कारवाई की जाती थी| यह कानून भारत के आज़ादी के 70 साल बाद भी इस देश में लागू था, जिस वजह से LGBT समुदाय के लोगों को बुरे नज़रो से देखा जाता था| या फिर कहा जाए तो LGBT समुदाय के लोग खुद को असुरक्षित महसूस करते थे| इनको कई बार बहुत से सामाजिक उत्पीड़ना का सामना भी करना पड़ता था, और यह उड़पीड़ना दोनों ही किसम की थी, मानसिक और शारीरिक| पता नहीं कितने ही गे (Gay) और लेस्बियन (Lesbian) जोड़े इस वजह से आत्महत्या भी कर लिए हैं|
धारा 377 का हटना | Removal of Section 377
LGBT समुदाय के लोग बरसों से ही इस IPC के सेक्शन 377 हो हटाने की मांग कर रहे थे, वे चाहते थे कि समाज इनको भी सामान्य रूप से देखें| इसको हटाने के लिए वे कितने ही बार कोर्ट का दरवाजा भी खटखटाए, कितने ही राजनीतिक दल और सामाजिक कार्यकर्ता भी इसके सहयोग में आगे आये, पर कुछ भी सकारात्मक परिणाम नहीं आया|
सन 2009 दिल्ली हाई कोर्ट ने पहली बार माना की धारा 377 मानव मौलिक अधिकार के खिलाफ है, और धारा 377 को हटाने का फ़ैसला किया, जिसमे एक ही लिंग के दो व्यस्क आपसी सहमति से आपस में सम्बन्ध बना सकते हैं| परन्तु 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाई कोर्ट के इस फैसले को पलट दिया और वापिस धारा 377 को बहाल कर दिया|
इसके बाद 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने सेक्शन 377 से जुड़े याचिकाओं पर सुनने का फैसला किया| बहुत से याचिकाओं को सुनने के बाद 06 सितम्बर 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने अपना ऐतिहासिक फैसला सुनाया, जिसमे धारा 377 को हटा दिया गया| सुप्रीम कोर्ट के अनुसार व्यस्क अपने आपसी सहमति से प्राइवेसी में समलैंगिक सम्बन्ध बना सकते हैं|
क्या भारत में समलैंगिक विवाह वैध है? | Is Gay Marriage Legal in India?
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने IPC के धारा 377 को हटा दिया है और समलैंगिकता को वैध करार दिया है, उसके बाद भी हमारे देश भारत में समलैंगिक विवाह अवैध है| जिसका मतलब कोई भी गे (Gay) या लेस्बियन (Lesbian) जोड़े आपस में शादी नहीं कर सकते| कोर्ट के अनुसार प्राइवेसी में समलैंगिक लोग कुछ भी कर सकते है, परन्तु अभी भी इनको शादी का अधिकार नहीं है| ऐसे जोड़ो को अभी भी बहुत से अधिकारों से भी वंचित रखा गया है|
समलैंगिक जोड़ों को वैवाहिक अधिकार दिलवाने के लिए बहुत याचिकायें कोर्ट में लगी हुई है और उन याचिकाओं पर सुनवाई चल रही है, परन्तु समलैंगिक जोड़ों के हक़ में फैसला कब आएगा, ये कोई नहीं जनता|
सरकार के तरफ से प्रतिनिधि करने वाले कुछ लोगों का कहना है कि समलैंगिक शादी भारत के संस्कृति के खिलाफ है, और इसीलिए इनके हक़ में फ़ैसला आना अभी भी मुश्किल नज़र आ रहा है|
परन्तु जो भी रहे, मौलिक अधिकार के अनुसार हर किसी को अपनी ज़िन्दगी अपने हिसाब से जीने का हक़ है| और इसीलिए समलैंगिक जोड़े चाहेंगे इनका शादी जल्द से जल्द वैध हो| अब आगे क्या होता है, कोर्ट क्या फैसला सुनाता है, ये तो वक़्त ही बताएगा|