What is C-Section Delivery in Hind

किसी भी महिला के लिए प्रेगनेंसी के नौ महीने बीतने के बाद सबसे मुश्किल होती है डिलीवरी। सालों से नॉर्मल डिलीवरी को ही सुरक्षित माना जाता है लेकिन बीते कुछ सालों से सिजेरियन ऑपरेशन का चलन काफी बढ़ गया है। सिजेरियन डिलीवरी (C-Section Delivery) एक जटिल प्रक्रिया है जिसमें मां और शिशु को कई तरह के स्‍वास्‍थ्‍य जोखिम भी हो सकते हैं।

सी-सेक्शन, जिसे सिजेरियन डिलीवरी (Caesarean Delivery) भी कहते हैं। प्रसव की इस प्रक्रिया में डॉक्टर योनि के माध्यम से प्रसव के बजाय मां के पेट और गर्भाशय में चीरों के माध्यम से बच्चे को जन्म दिया जाता है। कुछ मामलों में, यदि महिला को गर्भावस्था के दौरान कुछ जटिल समस्याएं हो तो सी-सेक्शन पूर्व नियोजित हो सकता है। मां और बच्चे दोनों के लिए जोखिम को कम करने के लिए डॉक्टर पहले से सिजेरियन डिलीवरी के बारे में सूचित कर सकते हैं। ज्यादातर मामलों में यही होता है कि गर्भावस्था के 39 सप्ताह या पूर्ण समय से पहले सिजेरियन डिलीवरी से बचा जाता है। हालाँकि, अगर कुछ जटिलताएँ हो तो बच्चे को 39 सप्ताह से पहले सिजेरियन डिलीवरी के माध्यम से जन्म दिया जाता है। इस लेख में हम सिजेरियन डिलीवरी (what is c section delivery?) और सिजेरियन डिलीवरी के बाद की देखभाल के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे।

पेट और गर्भाशय में चीरा लगाकर शिशु का जन्म कराने की प्रक्रिया को सिजेरियन-सेक्शन या सी-सेक्शन कहते हैं। ​आमतौर पर मां और बच्चे दोनों में से किसी एक को हेल्थ कॉम्प्लिीकेशंस होने पर सी-सेक्शन डिलीवरी की जाती है। लेकिन पिछले कुछ सालों से महिलाएं प्रसव के दर्द से बचने के लिए भी सी-सेक्शन डिलीवरी का ऑप्शन पसंद कर रही है। वहीं कुछ महिलाएं मुहूर्त या फिर अपनी पसंदीदा तारीख के हिसाब से बच्चे का जन्म कराना चाहती हैं, ऐसे में वे सिजेरियन डिलीवरी करवाना ही पसंद करती है।

कई बार ऐसा भी होता है कि 9 महीने बीतते ही या इससे पहले महिला को कुछ हेल्थ प्रॉब्लम्स हो जाती है और इन संजोगो में डॉक्टर को अचानक से भी सिजेरियन डिलीवरी कराने का फैसला लेना पड़ता है। लेकिन आपको बता दें कि सी-सेक्शन में सामान्य प्रसव के मुकाबले कुछ जोखिम भी होते हैं। यही वजह है कि पुराने जमाने में लोग अक्सर नॉर्मल डिलीवरी कराने के पक्ष में होते थे।

सी-सेक्शन/सिजेरियन ऑपरेशन क्यों किया जाता है? (Why is a C-section/ Caesarean Operation?)

अगर गर्भवती महिलाओं को नॉर्मल डिलीवरी में कुछ प्रॉब्लम होती है, यानी मां या नवजात शिशु की जान को नुकसान पहुंचने का अंदाजा होने पर डॉक्टर सी सेक्शन डिलीवरी का फैसला ले सकते हैं। इसके अलावा प्रसव के दौरान जटिलताओं के कारण या गर्भवती महिला की योनि सामान्य प्रसव के योग्य नहीं होने पर सिजेरियन ऑपरेशन भी किया जा सकता है।

​प्रसव पीड़ा न होना

ऐसे कारक हैं जिनकी वजह से यह महिलाओं को प्रसव पीड़ा नहीं होती है। जैसे कि महिलाओं में गर्भाशय ग्रीवा का संपूर्ण तौर पर न खुलना और प्रसव पीड़ा का धीमा होना या रुक जाना। इसके अलावा शिशु का डिलीवरी के लिए योग्य पोजीशन में ना होना भी मुख्य कारण है। ऐसा आमतौर पर प्रसव के दूसरे चरण में होता है।

यूट्राइन रप्‍चर की स्थिति

यूट्राइन रप्‍चर भी एक गंभीर स्‍वास्‍थ्‍य स्थिति है जो प्रेगनेंसी या प्रसव के दौरान होती है और इसमें फौरन ही सिजेरियन करना पड़ता है।

इस स्थिति में प्रेग्नेंट किया प्रसव के दौरान महिला का गर्भाशय छिल जाने पर शिशु को ऑक्सीजन की आपूर्ति में दिक्कत होती है। करीब पंद्रह सौ में से एक महिला को यूट्राइन रप्‍चर हो जाता है।

प्‍लेसेंटा प्रीविया की स्थिति

इस स्थिति में प्‍लेसेंटा गर्भाशय के नीचे होती है और आंशिक या संपूर्ण तौर पर गर्भाशय ग्रीवा को ढक देती है। कई महिला को प्रेगनेंसी की तीसरी तिमाही के दौरान प्‍लेसेंटा प्रीविया हो जाता है।

अगर किसी महिला को यह परेशानी होती है तो उसे पूरी तरह से आराम करने की और लगातार मॉनिटर करने की आवश्यकता रहती है।

महिलाओं में तीन तरह का प्‍लेसेंटा प्रीविया होता है। कंप्‍लीट, पार्शियल या मार्जिनल होता है। अगर कंप्‍लीट या पार्शियल प्‍लेसेंटा प्रीविया हो तो सिजेरियन ऑपरेशन की ही सलाह दी जाती है। वहीं मार्जिनल प्‍लेसेंटा प्रीविया में नॉर्मल डिलीवरी यह चांसेस रहते हैं।

गर्भ में दो या इससे ज्‍यादा बच्‍चे

गर्भ में दो या इससे ज्‍यादा बच्‍चे हैं तो और बच्‍चे डिलीवरी की पोजीशन में नहीं आए तो ऐसी स्थिति में सी सेक्‍शन करना पड़ता है।

कुछ अन्य कारक भी हो हैं जिनके लिए डॉक्टर सिजेरियन ऑपरेशन कर सकते हैं।

वह यह है:

  • बच्चे का सिर बहुत बड़ा है (मैक्रोसेफली)
  • यदि मां को स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं जैसे बीपी, शुगर, हृदय रोग आदि हैं।
  • महिला का पहले ही सिजेरियन ऑपरेशन (Caesarean) हो चुका है।
  •  बच्चा कंधे से बाहर आ रहा है।
  • अगर बच्चा पहले पैर से बाहर आ रहा है।
  • बच्चे को ऑक्सीजन की आपूर्ति में कमी।

सी-सेक्शन/सिजेरियन ऑपरेशन से पहले की तैयारी ? (Preparation Before a  C-section Operation)

स्त्री रोग विशेषज्ञ की सलाह के अनुसार सिजेरियन सर्जरी से पहले निम्नलिखित में से कुछ तैयारी की जाती है:

  • रक्त की जांच कराएं।
  • एनेस्थीसिया परमिट की जांच करें।
  • डॉक्टर द्वारा बताई गई दवाइयाँ लें।
  • सर्जरी से पहले कुछ भी न खाएं।
  • डॉक्टर की बातों का रखें ध्यान।
  • प्रक्रिया से पहले मूत्रमार्ग में भी कैथेटर रखा जाएगा। इसके अलावा जननांग क्षेत्र के आसपास के बाल हटाए जाते हैं।

सी-सेक्शन/सिजेरियन ऑपरेशन कैसे किया जाता है? (How is a C-Section Performed?)

  • सभी तैयारियां हो जाने के बाद, आमतौर पर महिला के शरीर के पेट के आसपास के क्षेत्र को सुन्न करने के लिए रोगी को एपिड्यूरल एनेस्थीसिया दिया जाता है। गर्भवती महिला के पेट के निचले हिस्से में चीरा लगाते हैं। इसे बिकिनी कट भी कहते है।
  • पेट में चीरे लगाने के बाद जब गर्भाशय दिखाई देने पर डॉक्टर गर्भाशय पर चीरा लगाकर बच्चे को बाहर निकालते हैं।
  • गर्भनाल को बीच से काट दिया जाता है।
  • सी सेक्शन डिलीवरी में पेट के चीरे से भ्रूण के जन्म तक की अवधि आमतौर पर 5 मिनट की होती है।
  • पूरी प्रक्रिया मैं आमतौर पर 45 – 60 मिनट लगते हैं।
  • सर्जरी के बाद, चीरा टांके लगाकर बंद कर दिया जाता है।

भारत में कई अस्पताल में स्त्री रोग विशेषज्ञ उपलब्ध हैं जहां उच्च जोखिम गर्भावस्था प्रबंधन के साथ सफलता के साथ सी-सेक्शन डिलीवरी की जाती है। अन्य महिला प्रक्रियाएं जैसे ओवेरियन सिस्ट हटाने की सर्जरी, गर्भाशय फाइब्रॉएड उपचार, सर्वाइकल कैंसर के उपचार भी किए जाते हैं।

सी-सेक्शन / सिजेरियन ऑपरेशन के बाद देखभाल ? (Care after Caesarean Operation/C-section)

  • सिजेरियन ऑपरेशन के बाद महिला को 3 से 4 दिनों तक अस्पताल में ही रहना चाहिए ताकि डॉक्टर उसकी स्थिति पर नजर रखना चाहिए।
  • सर्जरी के एक घंटे में ही स्तनपान तुरंत शुरू कर देना चाहिए। मां को 6 महीने तक शिशु को केवल स्तनपान ही करवाना चाहिए।
  • गर्भाशय के टांके घुल जाते हैं। लेकिन पेट पर बने टांके कुछ दिनों के बाद दूर हो जाते हैं।
  • एक नर्स नियमित रूप से ठीक होने के लिए महिला की स्थिति की निगरानी करती है। यदि बच्चा स्वस्थ है, तो वह माँ के साथ रिकवरी रूम में रह सकता है।
  • डिलिवरी के बाद प्रसूता महिला को खूब पानी और अन्य तरल पदार्थ पीना चाहिए।
  • महिला को सी- सेक्शन के दो दिन बाद चलने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।
  • सर्जरी के बाद अगर मां अपने आप कुछ भी खाने-पीने में सक्षम नहीं है, तो IV के माध्यम से तरल पदार्थ दिया जा सकता है।
  • सिजेरियन सर्जरी के बाद प्रसूता को ठीक होने के लिए पर्याप्त आराम करना बेहद ही जरूरी होता है जो भविष्य की जटिलताओं को कम करने में मदद करता है।
  • सर्जरी के दौरान चीरा लगाने वाली जगह पर हो रहे दर्द कम करने के लिए डॉक्टर दवा दे सकते हैं।
  • घाव को साफ और सूखा रखें। घाव को साफ करने के लिए हल्के साबुन से धो लें और फिर हल्के हाथ से साफ कर लें।
  • बच्चे के लिए टीकाकरण का ध्यान रखा जाना चाहिए और डॉक्टर द्वारा बताए गए समय के अनुसार दिया जाना चाहिए।
  • घर जाकर डॉक्टर के निर्देशों का पालन करें और नियमित रूप से डॉक्टर के पास जाएं ।

जिस महिला का c-section हुआ है उसे पूरी तरह से ठीक होने में 6-8 सप्ताह लग सकते हैं।

भारत में सी-सेक्शन/सिजेरियन ऑपरेशन की लागत कितनी है? (What is the Cost of C-section/ Caesarean Operation in India?)

भारत में सी-सेक्शन / सिजेरियन ऑपरेशन की कुल लागत लगभग INR 1,00,000 से INR 2,00,000 तक हो सकती है। भारत में कई बड़े अस्पताल और कुशल डॉक्टर हैं जो सी-सेक्शन/सीजेरियन ऑपरेशन करते हैं। लेकिन लागत सभी अस्पतालों में सुविधाओं के अनुसार अलग होती है।

इसके अलावा सर्जरी के बाद मरीज को पूरी तरह ठीक होने के लिए 7 दिन अस्पताल में ही रखा जाता है। साथ ही यह आप पर निर्भर करता है कि आप जनरल रूम में शिफ्ट होना चाहते हैं या प्राइवेट रूम में उसी के अनुसार सिजेरियन की कुल लागत लगाई जाती है।

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