पिछले कुछ समय से भारत समेत दुनिया भर के सभी देश आर्थिक चुनौतियों के समाधान में उलझे हुए हैं। कोरोना महामारी के बाद कमजोर पड़ने और रशिया-यूक्रेन युद्ध के कारण दुनिया की अर्थव्यवस्था में अमेरिका और ब्रिटेन जैसी महासत्ता को भी कोविड-19 के बाद लड़खड़ाते हुए देखा गया। ऐसे में अमेरिका (USA) ने आर्थिक नीतिगत फैसलों पर सभी का ध्यान होना स्वाभाविक बात है।
अमेरिका ने टेजरी विभाग ने हाल ही में मुद्रा निगरानी सूची (Currency Monitoring List) जारी की है जिसमें इस बार भारत का नाम नहीं (India) हैं। अमेरिकी रोजकोष विभाग साल में दो बार वहां की संसद में पेश की जाने वाली रिपोर्ट में यह लिस्ट जारी की जाती है। आखिर इस सूची (what is currency monitoring list of US) में नाम होने का क्या मतलब होता है, उससे हटने पर कौन से फायदे-नुकसान है और क्या उसका कोई बहुत बड़ा प्रभाव भी होगा या नहीं। चलिए इन सारी बातों को हम आगे विस्तार से समझते हैं:
अमेरिकी ट्रेजरी विभाग ने शुक्रवार, 11 नवंबर, 2022 को चार अन्य देशों के साथ भारत को करेंसी मॉनिटरिंग लिस्ट (why US removed India from currency monitoring list) से हटा दिया है। मॉनिटरिंग लिस्ट में उन प्रमुख व्यापारिक भागीदारों को शामिल किया गया है, जो अपनी मुद्रा प्रथाओं और मैक्रोइकॉनॉमिक नीतियों पर बारीकी से ध्यान देने योग्य हैं। भारत के अलावा, इटली, मैक्सिको, थाईलैंड और वियतनाम अन्य देश थे जिन्हें सूची से हटा दिया गया है। अमेरिकी ट्रेजरी विभाग ने यह कदम उस दिन उठाया जब ट्रेजरी सचिव जेनेट येलेन ने नई दिल्ली का दौरा किया और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से मुलाकात की थी।
इस दौरान दोनों नेताओं ने भारत और अमेरिका के बीच मजबूत व्यापारिक संबंध स्थापित करने के लिए जोर दिया था। यह मुलाकात ऐन मौके पर हुई है जब भारत जी20 देशों की अध्यक्षता भी संभालने जा रहा है।
वर्तमान में, पांच राज्यों को हटाने के बाद, चीन, जापान, कोरिया, जर्मनी, मलेशिया, सिंगापुर और ताइवान शेष सात अर्थव्यवस्थाएं हैं जो अब भी इस लिस्ट में बरकरार हैं और वर्तमान निगरानी सूची का हिस्सा हैं। विशेष रूप से, भारत लगभग दो वर्षों से इस सूची में था।
यूएस की ट्रेजरी सचिव जेनेट येलेन दोनों देशों के आर्थिक संबंधों को मजबूत बनाने के लिए भारत दौरे पर हैं। विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक भारत लिस्ट में बने रहने की कसौटी पर खरा नहीं उतरा है। यह मॉनिटरिंग लिस्ट ही इस बात की निगरानी करती है कि क्या देश अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में “अनफेयर कॉम्पिटिटिव एडवांटेज” हासिल करने या “बैलेंस पेमेंट एडजस्टमेंट” का फायदा उठाने के लिए अपनी करंसी और अमेरिकी डॉलर के बीच एक्सचेंज रेट में हेराफेरी करते हैं।
क्या है इस लिस्ट का मतलब? (What is Currency Monitoring List in Hindi?)
किसी भी देश के करेंसी मॉनिटरिंग लिस्ट में शामिल होने का मतलब यह होता है कि कोई भी देश कृत्रिम तरीके से अपने देश की मुद्रा की कीमत कम कर रहा है जिससे वह दूसरें देश की करेंसी से गलत फायदा उठा सके। ऐसा करने से मुद्रा का मूल्य कम होगा और उस देश के लिए निर्यात की लागत कम हो जाएगी और उससे होने वाला मुनाफा भी बढ़ेगा। वहीं सामान खरीदने वाले देश को उतनी ही कीमत चुकानी पड़ती है।
करेंसी मॉनिटरिंग लिस्ट में बरकरार चीन
रिपोर्ट के अनुसार जिन देशों को इस लिस्ट से हटा दिया गया उन्होंने लगातार दो रिपोर्ट में तीन मामलों में से सिर्फ एक ही मानदंड को पूरा किया है। वहीं चीन द्वारा अपने विदेशी विनिमय हस्तक्षेप को प्रकाशित करने में विफल होने के कारण और अपनी विनिमय दर तंत्र में पारदर्शिता की कमी के कारण वित्त विभाग की करीबी निगरानी में ही है। इन लिस्ट में शामिल रहने वाले अन्य देश में चीन, दक्षिण कोरिया, जापान, मलेशिया, जर्मनी, सिंगापुर और ताइवान है।
भारत यात्रा के दौरान व्यापार बंधनों को मजबूत करने के लिए इस रिपोर्ट का विमोचन किया गया था क्योंकि चीन पर अधिक निर्भरता से समस्याओं का सामना करने के बाद अब अमेरिका वैश्विक आर्थिक और मैन्युफैक्चरिंग रीस्ट्रक्चरिंग की तमन्ना रखता है। येलेन ने फ्रेंडशोरिंग की अवधारणा (मित्र देशों में सप्लाई सीरीज लाना) पर बात करते हुए कहा- ऐसी दुनिया में जहां सप्लाई सीरीज कमजोरियां बहुत बड़ी लागत लगा सकती हैं, हमारा यह अनुमान है कि भारत के साथ अपने व्यापार संबंधों को मजबूत करना भी अब बेहद ही जरूरी है। भारत हमारे भरोसेमंद व्यापारिक साझेदारों में शामिल है।
करंसी मॉनिटरिंग लिस्ट का उद्देश्य? (What is the Purpose of Currency Monitoring List?)
हर छह महीने में अमेरिका का राजकोष विभाग वैश्विक आर्थिक विकास और विदेशी विनियम दरों की समीक्षा पर निगरानी के आधार पर अपनी रिपोर्ट में इस बात की चर्चा करता है। इसके अलावा वह अमेरिकी के 20 सबसे बड़े व्यापारिक व्यवसायी साझेदारों की मुद्रा संबंधी गतिविधियों की भी समीक्षा भी करता है।
क्या हैं इस लिस्ट के पैमाने
किसी देश को मॉनिटरिंग लिस्ट में रखने के लिए जिन तीन कारकों को आधार बनाया गया है। वह तीन कारक हैं अमेरिका के साथ द्विपक्षीय व्यापार सरप्लस का साइज, चालू खाता सरप्लस और फॉरेन करंसी मार्केट में लगातार एकतरफा दखल। इसके अलावा, यह मुद्रा विकास, विदेशी मुद्रा आरक्षित कवरेज, पूंजी नियंत्रण, विनिमय दर प्रथाओं, और मौद्रिक नीति पर भी विचार करता है।
इस बात को विस्तार से समझाएं तो पहले मानदंड के अनुसार, उस देश का अमेरिका के साथ द्विपक्षीय व्यापार अधिशेष कम से कम 15 अरब डॉलर का हो। मानदंड के अनुसार, सामग्री चालू खाता अधिशेष GDP का कम से कम 3 प्रतिशत हो, (जिसका आंकलन Department of Treasury अपने वैश्विक विनिनय दर आंकलन ढांचे के तहत करे)। वहीं तीसरा, एक साल में कम से कम 8 बार फॉरेन करेंसी की खरीदी में एक तरफा दखल हो और यह खरीद GDP की कम से कम दो प्रतिशत हो।
तीन मानदडों का आधार
इस रिपोर्ट के मुताबिक यदि कोई देश तीन मानदंडों में से दो भी पूरा कर लेता है तो उस देश को इस लिस्ट में शामिल हो जाता है। वही एक बार इस लिस्ट में नाम शामिल होने पर करीब लगातार दो रिपोर्ट तक वह नाम यथावत रहता है।
अमेरिका के ट्रेड फैलिटेशन एंड ट्रेड एनफोर्समेंट एक्ट 2015 के मुताबिक भी तीन मानदडों में से दो क पूरा करने वाला देश इस लिस्ट में शामिल हो जाता है। इस रिपोर्ट के अनुसार भारत इन तीन में से एक ही मानदंड पूरा करता है।
वही फिलहाल इस रिपोर्ट में यह नहीं बताया गया कि भारत किन मानदंडों को पूरा करता या नहीं करता है, लेकिन इसमें संबंधित क्षेत्रों में भारत के प्रदर्शन का उल्लेख है। रिपोर्ट अनुसार जून के अंत में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 526.5 अरब डॉलर था, जो सकल घरेलू उत्पाद का 16 प्रतिशत है। भारत, (रिपोर्ट में शामिल अन्य देशों की तरह), मानक पर्याप्तता बेंचमार्क के आधार पर पर्याप्त – या पर्याप्त से ज्यादा – विदेशी मुद्रा भंडार को बनाए रखता है।
रिपोर्ट के अनुसार, इसका अमेरिका के साथ 48 बिलियन डॉलर का ट्रेड सरप्लस भी था और भारत ने आर्थिक नीतियों में भी पारदर्शिता सुनिश्चित की है। एकतरफा मुद्रा हस्तक्षेप के लिए विभाग का मानदंड 12 महीनों में से करीब आठ में विदेशी मुद्रा की शुद्ध खरीदारी है, जो जीडीपी का कम से कम दो प्रतिशत है। रिपोर्ट में यह भी शामिल है कि चौथी तिमाही में भारत की विदेशी मुद्रा की शुद्ध खरीद पिछली बार की तुलना में नकारात्मक 0.9 थी, या 30 बिलियन डॉलर से कम थी।
भारत के लिए अच्छी खबर
पिछले दो साल से भारत अमेरिका की करेंसी मॉनिटरिंग लिस्ट में था। इस लिस्ट के द्वारा अमेरिका अपने प्रमुख भागीदारों की करेंसी पर निगरानी रखता है। वही इस व्यवस्था के अंतर्गत प्रमुख व्यापार भागीदारों की करेंसी को लेकर गतिविधियों और वृहत आर्थिक नीतियों (macroeconomic policies) पर भी कड़ी नजर रखी जाती है। उन देशों को करंसी मॉनिटरिंग लिस्ट में रखा जाता है जिनके फॉरेन एक्सचेंज रेट पर अमेरिका को शक होता है। इस प्रकार भारत के इस लिस्ट से बाहर होने पर अमरीका को देश पर बढ़ता भरोसा साफ नजर आ रहा है जिसके बारे में जेनेट येलेन (Janet Yellen) ने खुद भी कहां है।
क्या होगा भारतीय रिजर्व बैंक को फायदा ?
इस लिस्ट में नाम आने पर किसी भी देश को करेंसी में हेरफेर करने वाला देश मान लिया जाता है जो अपने देश को अवैध तरीके से व्यापारिक लाभ पहुंचाने के लिए करेंसी का गलत तरीके से इस्तेमाल करते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार भारतीय रिजर्व बैंक को विनिमय को नियंत्रण करने के लिए कड़े कदम उठाने की सहूलियत भी मिलेगी और हमारे देश पर करेंसी में हेरफेर करने वाले देश का तमगा भी नहीं लगेगा।
बढ़ जाएगी भारतीय अर्थव्यवस्था की साख
इससे अब रुपये को भी मजबूती हासिल करने में सहायता मिलेगी और बाजारों में भी इसका फायदा नजर आएगा। विदेशी इन्वेस्टर्स को भारत में निवेश करने के लिए विश्वास बढ़ेगा और विश्व स्तर पर हमारे देश की आर्थिक स्थिति मजबूत होगी। साथ ही जी-20 देशों की अध्यक्षता मिलने और करेंसी मॉनिटरिंग लिस्ट से नाम हटने के बाद दोनों देशों की अर्थव्यवस्था को भी इसका बहुत बड़ा फायदा मिलेगा।