New report on sanitary pads

मासिक धर्म, हपीरियड्स, या महावारी महिलाओं में होने वाली एक प्राकृतिक प्रक्रिया है। पीरियड्स की शुरुआत होना इस बात का संकेत है कि महिलाओं का शरीर गर्भधारण करने की क्षमता की पहली सीढ़ी पार कर चुका है। साथ ही पीरियड्स शुरू होना यौनअवस्था का शुरू होने का भी संकेत है।

भले ही महिलाओं को हर महीने पीरियड्स होना एक नैचुरल प्रोसेस है, लेकिन इस दौरान हाइजीन का ख्याल न रखें जाए तो की सारी हेल्थ प्रॉब्लम्स हो सकती हैं। पीरियड्स में साफ-सफाई (Periods Hygiene) का ख्याल रखने और दाग से बचने के लिए महिलाएं सैनिटरी पैड्स का इस्तेमाल करती लेकिन क्या पीरियड्स के दौरान सिर्फ सैनिटरी पैड ही इस्तेमाल करना सही है?

अक्सर महिलाएं पीरियड्स के दौरान सैनिटरी पैड (Sanitary Pad Harmful Chemicals can cause Cancer) का इस्तेमाल करती हैं और इसके पीछे उनका कंफर्ट और इसके विकल्पों (Alternative Options of Sanitary Pads) की जानकारी नहीं होना बहुत बड़ी समस्या बन सकती हैं। लंबे समय तक सैनिटरी पैड्स का इस्तेमाल करने से उनकी सेहत पर बुरा असर भी पड़ सकता है। साथ ही यह वातावरण के लिए भी नुकसानदायक है।

हर औरत अपनी जिंदगी के करीब 7 साल periods में ही बिताती है। यह वे दिन, होते हैं जब पेट का पेट का निचला हिस्सा ऐंठता-फैलता जाता है और तलवे झन्नाते रहते हैं। किसी महिला को माइग्रेन का दौरा पड़ता है, तो किसी को उलझनें होती है। जब भी किसी महिला पीरियड्स थम जाएं, तब वो सिर्फ हाड़-मांस का पुतला ही रह जाती है।

पिछले दिनों ही महिलाओं के बारे में एक रिपोर्ट आई थी जिसमें स्वीडिश एनजीओ इंटरनेशनल पॉल्युटेंट्स इलिमिनेशन नेटवर्क (IPEN) ने लोकल संस्था टॉक्सिक लिंक के सहयोग से हिंदुस्तान में बन रहे सैनिटरी पैड्स की जांच की थी और यह पाया कि इनमें जहर होता है। वो भी कोई ऐसा वैसा नहीं बल्कि कैंसर पैदा करने वाला जहर होता है।

‘रैप्ड इन सिक्रेसी’ नाम से जारी की इस रिपोर्ट में गली-मोहल्ले में बनने वाले कोई आम नहीं, बल्कि ऐसे पैड ब्रांड्स का भी जिक्र किया गया है, जिनके एड हम टीवी पर देखते है। ये सभी ऐसी कंपनियां हैं, जो दावा करती हैं कि उनका पैड लेते ही महिलाएं सारे दर्द-वर्द भूलकर ताजा फूल-सी खिल उठेगी या तो मैराथन विनर होंगी, या ऑफिस की टॉप परफॉर्मर बनेगी। इतना ही नहीं कि सैनिटरी पैड के टीवी ऐड यह भी दिखाया जाता है की पैड खून को मजबूती से सोखने के साथ-साथ  पीरियड्स का सारा दर्द भी हर लेंगे।

सेनेटरी पैड है कई बीमारियों का कारण

इन्हीं जादुई पैड बनाने वाली कंपनियों को लेकर खुलासा हुआ कि वे जादू से भली-चंगी औरत को कैंसर,क्षब्लड-प्रेशर या और भी कई छोटी-बड़ी बीमारियां भी दे सकते हैं।

स्टडी में बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किए जाने वाले सैनिटरी नैपकिन को लेकर अहम खुलासा किया गया है। इस अध्ययन के अनुसार भारत में उपलब्ध सैनिटरी पैड में कैंसर पैदा करने वाले रसायन पाए गए हैं। यह एक बहुत ही चौंकाने वाला और बड़ा चिंताजनक तथ्य है। भारत में हर चार में से करीब तीन किशोर महिलाएं सैनिटरी नैपकिन का इस्तेमाल करती हैं। एनवायरनमेंटल एनजीओ टॉक्सिक्स लिंक के प्रोग्राम कोऑर्डिनेटर और रिसर्चर्स में से एक डॉ. अमित ने कहा कि सैनिटरी उत्पादों में कई हानिकारक रसायनों का मिलना चौंकाने वाला है। इसमें रिप्रोडक्टिव टॉक्सिन्स,कार्सिनोजेन्स, एलर्जेंस और एंडोक्राइन डिसरप्टर्स जैसे जहरीले रसायन शामिल होते हैं।

सभी नमूनों में मिले थैलेट और वाष्पशील कार्बनिक यौगिक मिले

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, NGO द्वारा किए गए अध्ययन ने पूरे भारत में 10 ब्रांडों के पैड (जैविक और अकार्बनिक समेत) का परीक्षण किया और सभी नमूनों में थैलेट और वाष्पशील कार्बनिक यौगिकों की उपस्थिति पाई। इन दोनों ही प्रदूषक रसायनों में कैंसर कोशिकाएं बनाने की क्षमता होती है। वहीं टॉक्सिक्स लिंक ने यह भी पाया  कि विश्लेषण किए गए कुछ सैनेट्री पैड में उनकी सांद्रता यूरोपीय विनियमन मानक से भी तीन गुना अधिक थी।

यहां सबसे चिंताजनक बात तो यह है कि सैनिटरी पैड द्वारा हानिकारक रसायनों के शरीर द्वारा अवशोषित होने की संभावनाएं  होती है। टॉक्सिक्स लिंक की कार्यक्रम समन्वयक डॉ. आकांक्षा मेहरोत्रा के मुताबिक एक श्लेष्मा झिल्ली के रूप में योनि, त्वचा की तुलना में अधिक रसायनों को स्रावित और अवशोषित कर सकती है।

सेनेटरी पैड को लेकर भारत में नहीं है कड़े मापदंड

हमारे देश सुरक्षा के स्वच्छ साधनों के इस्तेमाल की बजाय लड़कियों को शुरुआत से ही सेनेटरी पैड का इस्तेमाल करने का सुझाव दिया जाता है।

अब इस रिसर्च के बाद कार्सिनोजेन्स सहित हानिकारक रसायनों की उपस्थिति महिलाओं के विश्वास के लिए झटका है। यूरोपीय देशों में सेनेटरी पैड को लेकर सख्त नियम हैं लेकिन हमारे देश में सैनिटरी पैड की संरचना, निर्माण और इस्तेमाल को लेकर कड़े मापदंड नहीं हैं। हालांकि ये BSI मानकों के अधीन हैं, लेकिन इनमें रसायनों पर कुछ भी विशिष्ट निर्देश ही नहीं है।

नवीनतम राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण से यह पता चलता है कि 15-24 वर्ष की क़रीब 64 प्रतिशत महिलाएं सैनिटरी पैड का इस्तेमाल करती हैं। इस बारे में यह अनुमान भी लगाया गया है कि अधिक समृद्ध समाज में ही पैड का सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है। वहीं भारतीय सैनिटरी पैड बाजार 2021 में 618.4 मिलियन डॉलर के मूल्य पर पहुंच गया। आईएमएआरसी (IMARC) समूह के मुताबिक, उम्मीद है कि यह बाजार 2027 तक 1.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंचेगा।

आखिर क्यों है सैनिटरी पैड्स के विकल्पों की जरूरत?

महिलाएं पीरियड्स के दौरान जिस सेनेटरी पैड को इस्तेमाल करती है वह प्लास्टिक से बना होता है और पूरी तरह से डीकंपोज होने में 500 से भी अधिक साल लग जाते हैं। वहीं लंबे समय तक ऐसे पैड्स का इस्तेमाल करने वाली महिलाएं हेल्थ और स्किन प्रॉब्लम्स (Disadvantages of Sanitary Pads) का शिकार भी हो सकती है। जैसे कि:

  1. यूरीनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन
  2. वजायनल माइक्रोफ्लोरा बैलेंस का बिगड़ना
  3. जेनाइटल ट्रैक्ट इंफेक्शन
  4. स्किन रैशेज

महिलाएं हर महीने ही पीरियड्स के दौरान महिलाएं सैनिटरी पैड का इस्तेमाल करती हैं लेकिन सैनिटरी पैड (Alternatives Of Sanitary Pad) के अलावा भी महिलाओं को पीरियड में इस्तेमाल करने के लिए कई ओप्शन मौजूद है।

सैनिटरी पैड के विकल्प

1.क्लॉथ पैड: क्लॉथ पैड्स बिल्कुल ही सैनिटरी पैड्स की तरह ही होते हैं। लेकिन इन्हें बहुत ही खास तरीके से बनाया जाता है जिसे हम धोकर दोबारा इस्तेमाल कर सकते हैं। साथ ही यह कपड़े और कॉटन से बना हुआ होता है जो इसे इको फ्रेंडली बना देता है। वही सैनिटरी पैड्स की तरह इसमें अन्य टॉक्सिक चीजों का इस्तेमाल नहीं किया जाता है इससे हेल्थ या स्किन प्रॉब्लम का कोई भी खतरा नहीं रहता है।

2.टैंपोन: पिछले कुछ सालों से टेंपोन भी महिलाओं की पहली पसंद बने हुए हैं। टेंपोन हाइजीन को बनाए रखने में मदद करती है लेकिन यह ज्यादा कंफर्टेबल भी नहीं है। लेकिन इससे स्किन में होने वाले रैशेज और खुजली से राहत मिलती है और इस्तेमाल में भी यह आसान है। इसे वजाइना में इंसर्ट किया जाता है।

3.मेंस्ट्रूअल कप: टैंपोन की तरह इसे भी वजाइना में इंसर्ट किया जाता है। टैंपोन के मुकाबले इसमें एक ही बार में ज्यादा ब्लड कलेक्ट होता है और इसे बार-बार बदलने की जरूरत भी नहीं होगी। आप इसे 12 घंटे तक इस्तेमाल करने के बाद खाली कर गर्म पानी से धो कर दोबारा इस्तेमाल कर सकते हैं।

4.मेंस्ट्रूअल स्पॉन्ज: मेंस्ट्रूअल स्पॉन्ज सैनिटरी पैड का अगला विकल्प है। सी- स्पोंज के नाम से चर्चित मेंस्ट्रूअल स्पॉन्ज को समुंदर से निकाला जाता है जो संपूर्ण तौर पर नेचुरल ही है। इसे हम करीब 6 महीने तक री यूज कर सकते हैं और इसे भी टैंपोन की तरह ही वजाइना में ही इंसर्ट किया जाता है। इसकी अब्जॉर्प्शन कैपेसिटी भी ज्यादा होती है और इसमें कोई भी केमिकल मटेरियल भी नहीं होता है।

5.मेंस्ट्रूअल डिस्क: मेंस्ट्रुअल डिस्क के बारे में लोगों को ज्यादा जानकारी नहीं है। इस डिस्क को भी वजाइना में इंसर्ट करते हैं और करीब 12 घंटे तक युज कर सकते है।

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