Role of Commercial Bank in Indian Economy

वाणिज्यिक बैंक (Commercial Banks) हमारे देश की आधुनिक अर्थव्यवस्थाओं की रीढ़ है। वाणिज्यिक बैंक भारत (Role of Commercial Bank in Indian Economy) में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए देश के आर्थिक विकास को बढ़ावा देते हैं।

किसी देश की अर्थव्यवस्था के विकास में वाणिज्यिक बैंक उद्योग और व्यापार के विकास के लिए एक प्रमुख घटक हैं। वे (Commercial Banks) देश के धन और संसाधनों के संरक्षक के तौर पर अपनी भूमिका निभाते हैं और पूंजी को उचित समय पर उत्पादक संपत्तियों में स्थानांतरित करने में भी सक्षम बनाते हैं।

वाणिज्यिक बैंक (Role of Commercial Bank in Indian Economy) भारत में विशेष रूप से वित्तीय प्रक्रियाओं में महत्वपूर्ण अंतर्दृष्टि प्रदान करते हुए देश के आर्थिक विकास को बढ़ावा देते हैं। वाणिज्यिक बैंक लंबे समय से भारत की सफलता का इंजन रहे हैं, जो देश की आबादी को कम लागत पर वित्तीय सेवाएं प्रदान करते हैं और लाखों उद्योगों, विशेष रूप से मध्यम और लघु उद्यमों ((MSMEs)) की लघु और मध्यम अवधि की लोन आवश्यकताओं को भी पूरा करते हैं।

अर्थव्यवस्था के सभी घटकों, कृषि, निर्माण व सेवा क्षेत्र में न केवल वर्तमान उत्पादन स्तर को बनाये रखने और सतत विस्तार के लिए स्थायी व कार्यशील पूंजी की निरंतर आवश्यकता होती है । इस आवशयकता की पूर्ति बैंकों द्वारा लोन (ऋण) व साख सुविधा के माध्यम से की जाती हैंं । लोन व साख के लिये उपलब्ध करवायी जाने वाली राशि, बैंक, जनता से बचत के रूप में संग्रहित करते हैंं । इस प्रकार वाणिज्यिक बैंक (Role of Commercial Bank in Indian Economy) जनता की बचत व देश की वित्तीय आवश्यकता के बीच महत्वपूर्ण कड़ी हैं ।

भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम 1934 की मूलभूत संरचना (fundamental structure) के अनुसार, देश के सभी बड़े बैंकों को वाणिज्यिक के रूप में वर्गीकृत किया गया है। हालांकि, अनुसूचित बैंक श्रेणी (scheduled bank category) के तहत, अतिरिक्त बैंकिंग श्रेणियां हैं जैसे कि स्मॉल फाइनेंस बैंक, पेमेंट बैंक और को – ऑपरेटिव बैंक। वाणिज्यिक बैंकों को स्वामित्व के अनुसार सार्वजनिक क्षेत्र, निजी क्षेत्र, विदेशी और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों में विभाजित किया गया है।

भारतीय अर्थव्यवस्था में वाणिज्यिक बैंक के कार्य

यहां हम विस्तारपूर्वक बता रहे हैं कि किस प्रकार से किसी भी देश की आर्थिक सफलता के लिए एक सुव्यवस्थित बैंकिंग प्रणाली आवश्यक है,

पूंजी निर्माण (Capital formation) – वाणिज्यिक बैंक बचत और निवेश को बढ़ावा देते हैं, जिससे पूंजी की कमी को दूर करने में काफी मदद मिलती है। बैंक ही वह महत्वपूर्ण संरक्षक हैं जो इन संसाधनों को उत्पादक उपयोग में लाकर देश में पूंजी निर्माण को बढ़ावा देते हैं।

व्यापारिक कार्य (Trading functions) – वाणिज्यिक बैंकों(Commercial Banks) को नगरपालिका, सरकार और कॉर्पोरेट बॉन्ड के लिए बाजार निर्माताओं के रूप में काम करने की अनुमति है। बैंक अपनी बाजार-निर्माण गतिविधियों (मार्केट मेकिंग एक्टिविटी) के माध्यम से जारीकर्ताओं को काउंसलिंग, एडवाइजरी और तकनीकी निर्देश (technical direction) प्रदान कर सकते हैं।

क्रेडिट निर्माण (Credit creation) – बचत और निवेश को बढ़ावा देने के अलावा, बैंक उद्योगों के लिए भी उत्पादक संपत्ति (productive assets) बनाने में मददगार होते है। बैंक की इस क्रेडिट का अर्थव्यवस्था पर विभिन्न तरीकों से प्रभाव पड़ता है।

फंड ट्रांसफर – कमर्शियल बैंकों की मदद से भारत या विदेश में कहीं भी फंड भेजना बहुत आसान हो गया है।

उद्यमिता का विकास (Growth of entrepreneurship)- बैंक देश के उद्यमियों को पूंजी प्रदान करके और उत्पादक उद्देश्यों में निवेश करके आत्मनिर्भरता को भी प्रोत्साहित करते हैं। साथ ही वाणिज्य बैंक बेरोजगारी को कम करते हैं और सही उद्योगों को भी बढ़ावा देते हैं।

बचत का वित्तीयकरण (Financialization of savings)- सेविंग्स के तौर पर अपना धन बचाने के लिए वाणिज्यिक बैंक एक सबसे सुरक्षित स्थान हैं।

धन सृजन (Wealth creation) – काउंसलिंग, एडवाइजरी और तकनीकी सेवाएं प्रदान करके, बैंक विशेषज्ञ निवेशकों को म्यूचुअल फंड या प्रत्यक्ष निवेश के लिए भी निर्देशित कर सकते हैं। बैंक सभी अकाउंट होल्डर्स के लिए संरक्षक के रूप में काम कर सकता है। वाणिज्य बैंक अपने ग्राहकों को सेफ्टी लॉकर, निवेश के अवसरों के लिए लोन प्रदान कर सकता है।इन सभी कार्यों के साथ ही वसीयत और निवेश निधि के लिए एक ट्रस्टी के रूप में कार्य कर सकता है।

वर्तमान समय में देश की अर्थव्यवस्था में वाणिज्यिक बैंकों की भूमिका

आज के डिजिटल युग और कठिन व्यापक आर्थिक संदर्भ में भी, वाणिज्यिक बैंकों (Role of Commercial Bank in Indian Economy) द्वारा निभाई गई भूमिका हमारे देश के विकास के लिए महत्वपूर्ण बनी हुई है। वर्तमान समय में जोखिम और नियामक सुरक्षा एक सर्वोच्च प्राथमिकता होने के बावजूद भी बैंक वित्तीय प्रदर्शन और बढ़ती उपभोक्ता और निवेशक अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए नवीन तरीकों की तलाश कर रहे हैं। ऐसा करने के पीछे बैंक का हेतु लॉन्ग टर्म प्रॉफिटेबिलिटी (दीर्घकालिक लाभप्रदता) उत्पन्न करने के लिए परिचालन और व्यावसायिक मॉडल को पुनर्गठित और अनुकूलित करना हैं। इस बात में कोई शक नहीं के डिजिटल करेंसी के युग में रिलेवेंट बने रहने के लिए बैंकों को इन्नोवेटिव आईडियाज और व्यवसाय-आधारित परिवर्तन को अपनाने की आवश्यकता होगी।

वाणिज्य बैंक उद्योग और निवेश को बढ़ावा देते हैं जिससे स्वचालित रूप से रोजगार उत्पन्न होता है।
इस प्रकार, बैंक रोजगार के अवसर (Generate employment ) पैदा कर देश की अर्थव्यवस्था को सक्षम बनाता है।

Promoting people’s saving habits

बैंक आकर्षक जमा योजना या फिक्स डिपॉजिट स्कीम द्वारा जमाकर्ताओं को आकर्षित करता है। इस प्रकार भारतीय अर्थव्यवस्था में वाणिज्यिक बैंक की भूमिका लोगों में बैंकिंग की आदतें या बचत की आदतें बनाकर और रोजगार के अवसर मुहैया करवाना है।

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